Friday, May 24, 2013

दिल में पनपता है

दिल में पनपता है
सीने में धड़कता है 
हूक सी उठती है जब
तो आँखों में पिघलता है
दर्द जब हद से परे हो जाता है
तो आँखों से झलकता है
चेहरे को भिगोता हुआ
इबादत करते हाथों पे आ गिरता है

मेरे ये अश्क भी तो भाप बनके उड़ते होंगे
इस खुश्क मौसम में थोड़ी तो नमी पैदा करते होंगे
कभी ये भी तो बादल का हिस्सा बन उड़ते होंगे
किसी खेत में बारिश बनके बरसते होंगे
गेहूं की बालियाँ जब खेतो में लहलहाती होंगी
कुछ दाने यक़ीनन मेरे अश्क से भी बनते होंगे

इन दानों को कोई भूखा बच्चा जब खायेगा
खूब हंसेगा ,खेलेगा और मां के मन को भायेगा

दर्द को ,आंसू को, खुशियों में ऐसे बदला जाता है
समझ गया तेरे आगे हर सिर क्यूँ झुक जाता है
समझ गया तेरे आगे हर सिर क्यूँ झुक जाता है

दीपक




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