Tuesday, May 28, 2013

सागर जैसा मन मेरा,उन्मुक्त किनारों वाला

सागर जैसा मन मेरा,उन्मुक्त किनारों वाला
हर बूंद समाहित कर कर के मैं बूंद बूंद को सागर करता
बूंद बूंद फिर टूट टूट कर बादल को सब वापस करता
रह जाता खारापन मुझमे मधुर तृप्ति को वापस करता
ताप-कोप को सहने वाला शीतलता लौटने वाला
सागर जैसा मन मेरा,उन्मुक्त किनारों वाला

दीपक 

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