मैं टूट कर गिरुं भी तो आईने की तरह
तेरे चेहरे को हजार कर लूँ ,तेरे दुश्मन पे मैं वार कर दूँ
मेरे क़त्ल की गवाही देने भी न आना कोई गम नहीं ए दोस्त
मुझे आदत है कि दो आंसुओं को मैं चार कर लूँ
दीपक
तेरे चेहरे को हजार कर लूँ ,तेरे दुश्मन पे मैं वार कर दूँ
मेरे क़त्ल की गवाही देने भी न आना कोई गम नहीं ए दोस्त
मुझे आदत है कि दो आंसुओं को मैं चार कर लूँ
दीपक
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