Tuesday, May 21, 2013

एक जीवन भी कम पड़ जाता और कहाँ से लाऊं मैं

एक जीवन भी कम पड़ जाता और कहाँ से लाऊं मैं
सेवा में हर शब्द समर्पित, नव गीत कहाँ से लाऊं मैं

लिख लिख कर है धन्य लेखनी,रक्त कहाँ से लाऊं मैं
देना तू आशीष सदा मां सत पथ से ना डिग जाऊं मैं

जब जब जीवन मिले भारते तेरा ही कहलाऊँ मैं
शीश नवाऊँ ,शीश कटाऊँ तुझसे दूर न जाऊँ मैं


दीपक


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