Tuesday, September 4, 2012

पोथी पत्रे रास न आये ,ढाई अक्षर लाया हूँ

क्यों मथे समंदर मेहनतकश तू ,मैं मेहताना लाया हूँ
पोथी पत्रे रास न आये ,ढाई अक्षर लाया हूँ
टिका पाँव पे पाँव जरा तू ,एक नजराना लाया हूँ
बांसों के जंगल से गुज़रा था ,बंसी लेकर आया हूँ
पलट ज़रा और देख मुझे तू, मैं परवाना आया हूँ
मखमल के बिस्तर नर्म बहुत थे, नींद चैन की लाया हूँ 
सांस ज़रा सी लेले बन्दे मैं परवाना आया हूँ
आग का दरिया गर्म बहुत था ,अंतर्ज्योति  लाया हूँ


दीपक अन्जान ....

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