Friday, September 7, 2012

हम चाँद से मुहं फेर बैठे, तारों की चाह में

मैं चलता ही गया ,बरबस रुकने की चाह में
दोस्तों से कर ली दुश्मनी ,ज़िन्दगी की चाह में

अब ठिकाने हैं बहुत ,पर आशियाँ दिखता नहीं
मंजिलें छोड़ दी मैंने ,सुनसान रास्तों की चाह मैं

अब सबब है कि कुफ्र है हर तरफ, और बैचैनी का माहौल है
लोग कहते हैं की हम चाँद से मुहं फेर बैठे, तारों की चाह में


दीपक अन्जान ...

No comments:

Post a Comment