सपनों में दायरे नहीं होते , बस पंख होते हैं बस उडान होती हैI
मैं जानता हूँ इन हँसने वालों को ,उन्हें इस सफ़र से कितनी थकान होती हैII
Monday, September 3, 2012
आज इतने गिर चुके हो अब कि और गिरा नहीं सकते
तुम्हारी महफिलों मे जिन किस्सों की वाह वाह होती है
शर्मनाक इतने हैं कि खुद को सुना नहीं सकते
तुमसे क्या शिकायत करें ,तुम्हारी तारीफ की थी कभी
पर आज इतने गिर चुके हो अब कि और गिरा नहीं सकते
दीपक अन्जान...
दोस्तों इसे शेयर करें और दिल्ली के पहरेदारों को जगाने मैं मेरी मदद करें .
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