सोलह बरस की बाली उम्र को सलाम !!
आज संसद से लेकर चौपालों तक शायद इसी बात पर चर्चा हो रही है की क्या सहमति से सेक्स की उम्र में बदलाव का प्रस्ताव सही दिशा में उठाया गया कदम है ? जिस देश में मनपसंद वर अथवा वधु का चुनाव करने की उम्र अठारह साल है और यहाँ तक कि राजनैतिक मत प्रकट करने की भी यही उम्र सीमा है वहां सहमति पूर्वक सेक्स करने के लिए इतनी कम उम्र का प्रस्ताव बहुत सी रूढिगत मान्यताओं की धज्जियाँ उड़ाता प्रतीत होता है .अगर यह नियम पारित हुआ तो समाज की संरचना का बदलना तय है .ज्ञातव्य है कि भारत में लिव-इन अर्थात स्त्री पुरुष के बिना विवाह साथ रहने के अधिकार को पहले ही मान्यता मिल चुकी है .
जब सहमति पूर्वक सेक्स की प्रस्तावित उम्र के बारे में सोसाइटी के एक बुजुर्ग व्यक्ति से बात की तो, उन्होंने पहले तो इस बारे मैं खुल कर बात नहीं की परन्तु थोड़ी देर बार वो सहज होकर इस प्रस्ताव की निंदा करने लगे। कारण पूछने पर वो मुझे धार्मिक मान्यताओं ,पाप पुण्य और शालीनता का हवाला देने लगे यहाँ तक की उन्होंने शास्त्रगत मर्यादा एवं आचरण शुद्धता की बात भी जोड़ी . तब मेरे मन मैं विचार आया की क्यूँ न किसी शास्त्र पारंगत व्यक्ति से ही बात की जाए .
चर्चा के अगले अंक में मैंने अपने एक परिचित पंडित जी को फ़ोन लगाया . यह श्रीमान एक मंदिर में पुजारी हैं . मेरी अपेक्षा के विरुद्ध वे इस प्रस्ताव का पक्ष लेते दिखे . उन्होंने कहा की हिन्दू धर्म मैं तो पहले से ही गन्धर्व विवाह का चलन है और जहाँ कहीं भी गन्धर्व विवाह का उल्लेख मिलता है वहां किसी भी वयस्क महिला या पुरुष को सहवास की स्वतंत्रता है . परन्तु उन्होंने यह भी कहा की अंग्रेजी में सेक्स और हिंदी के सहवास में बहुत अंतर है जहाँ एक और सेक्स उन्मुक्तता का पप्रतीक है वहीँ दूसरी और सहवास का आशय साथ -साथ रहने और जिम्मेदारियां उठाने से है .उनके मतानुसार सहवास बहुत कुछ, आजकल प्रचलित लिव -इन परंपरा का विशुद्ध रूप है। दोनों में केवल इतना अंतर है की जहाँ लिव -इन परंपरा बिना विवाह साथ रहने और सेक्स करने तक सीमित है वहीँ गन्धर्व विवाह साथ-साथ जीवन रस का आनंद लेने और विकास करने का मार्ग था।पंडित जी के अनुसार अंग्रेजी के अगर लिव-इन को अगर लाइव -इन के रूप में परिभाषित किया जा सके तो यह बहुत कुछ गन्धर्व विवाह जैसा होगा . शास्त्रों के अधिकारी इन पंडित जी ने चौदह वर्ष को शास्त्र सम्यक वयस्क उम्र बताया . इस उम्र के बाद शास्त्र के अनुसार चुनाव की स्वतंत्रता है .
वयस्क शब्द की परिभाषा को समझने के लिए मैंने अपने एक डॉक्टर मित्र को संपर्क किया . ध्यान दीजिये कि डॉक्टर मानसिक उम्र बजाय शारीरिक परिवर्तनों को ही उम्र एवं अवस्था परिवर्तन के लिए जिम्मेदार मानते हैं। मेडिकल साइंस तेरह -पंद्रह वर्ष की लड़कियों और सोलह-अठारह वर्ष के लडकों को उनके हार्मोन जनित शारीरिक परिवर्तनों के आधार वयस्क परिभाषित करता है . लड़कियों में मासिक धर्मं की शुरुवात औसतन तेरह वर्ष की उम्र में ही हो जाती है और उसका शरीर वयस्क होने की तयारी मैं होता है। सोलह वर्ष की उम्र तक यह प्रक्रिया पूरी हो जाती है . मैंने उस डॉक्टर मित्र को शुक्रिया कहा और सोच विचार मैं डूब गया .
प्रकृति स्वयं ही स्त्री पुरुष की परिभाषा गढ़ने मैं सक्षम है . सोलह साल की उम्र में एक लड़का या लड़की शारीरिक रूप से यौन संबंधों के लिए तैयार हो जाते हैं। हमारे समाज में सोलह वर्ष की अवस्था को वयस्क ही माना गया है . आज भी चोरी छुपे बाल विवाह हो रहे हैं . मेरे एक शिक्षक मुझे याद आते हैं जो सदैव कहा करते थे की कम उम्र में बनने वाले रिश्ते ज्यादा समय तक चलते हैं . शायद यही वजह है कि अमरीका जैसे देशों में जहाँ सेक्स उन्मुक्क्त है और लोग विवाह उम्रदराज होने के बाद ही कर रहे हैं ,अनेक पारिवारिक एवं वैवाहिक समस्याए मुह फाड़े खड़ी हैं . कवियों ने भी प्रेम की उम्र को सोलह ही माना है .यही वो उम्र है जब दिल किसी का हो जाना चाहता है या किसी को अपना बना लेना चाहता है .
परन्तु दूसरा पक्ष कहता है की प्रेम केवल सेक्स की तैयारी की अवस्था है परिपक्वता की नहीं .एक लड़की के लिए यह अवस्था संतानोत्पत्ति के लिहाज से अधिकांशतः जानलेवा ही होती है .वहीं इस उम्र का व्यक्ति भावनात्मक रूप से सुगठित भी नहीं होता और ऐसे में उसे सेक्स का अधिकार देना बन्दर के हाथ में उस्तरा पकड़ाने जैसा ही है .हमें यह भी नहीं भुलाना चाहिए कि हमारा समाज पुरुष प्रधान है जहाँ सरे आम इस तरह के अधिकार प्रदान करना व्यभिचारियों की लोलुपता बढ़ाएगा . आज समाज में बलात्कार और उत्पीड़न की घटनाएं साफ़ तौर पर दिखाती हैं कि किस तरह पुरुष समाज लड़की के पैदा होते ही उस पर गिद्ध दृष्टि जमाये रखता है।ऐसे समाज में सेक्स की उन्मुक्तता और उम्र सीमा के रूप मैं दी गयी छूट क्या इस वीभत्सकारी विचार को और पुख्ता नहीं कर देगी ? आज दिल्ली और मुंबई के रेड लाइट एरिया में हजारों नाबालिग लड़कियां देहव्यापार को विवश हैं ,उनमें से बहुत सी तो दस बारह साल की कच्ची उम्र में ही स्वेच्छापूर्वक इस दावानल में झोंक दी जाती हैं क्यूंकि उनकी उम्र और माहौल उन्हें स्वेच्छा या सहमति का मतलब समझने का अवसर ही नहीं देता .जिस देश में खस्ता हाल शिक्षा आज भी लाखों युवाओं को मानसिक रूप से परिपक्व नहीं बना पा रही है और जहाँ सोलह साल के अधिकांश युवा मानसिक तौर पर शायद दस साल के कान्वेंट educated बच्चे की बराबरी करने मैं अक्षम हैं ; जिस देश में आज भी यौन शिक्षा मात्र किताबों तक ही सीमित है , वहां इस तरह के अनर्थक प्रस्तावों पर विचार महज कुछ बुद्धिजीवियों का उम्दा मनोरंजन ही कर सकता है .
इसमें कोई दो राय नहीं की समाज बदल रहा है और बदलते समाज के साथ साथ नियमों और परम्पराओं का बदलना भी लाजिमी है पर यह भी याद रखना आवश्यक है की परिवर्तन की क्या कीमत हम चुकायेंगे ? क्यूंकि कोई भी परिवर्तन अकेला नहीं आता बल्कि अपने साथ परिवर्तनों की एक पूरी श्रृंखला लाता है .
बात उम्र की कदापि नहीं है . गाँधी जैसे महापुरुष का विवाह भी कम उम्र में ही हुआ था .प्रेम और सेक्स को नियमों तथा उम्र सीमा में बांधने का कोई विचार आज तक किसी देश या किसी काल में सफल नहीं हुआ . यह नियम भी अगर पारित हुआ तो केवल एक कागजी नियम बन कर रह जायेगा मगर इसकी वजह से उन्मुक्तता का जो सन्देश भारतवर्ष में फैलेगा उसकी बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है .
फिलहाल भारत सरकार को चाहिए की वो वयस्क पारिभाषित किये जाने योग्य उम्र सीमा तय करे और विचार करे की एक वयस्क को इस देश में क्या क्या अधिकार दिए जा सकते हैं . इस तरह सेक्स आधारित नियम समाज को सही दिशा देने की बजाय भ्रमित भी कर सकते हैं .
आज संसद से लेकर चौपालों तक शायद इसी बात पर चर्चा हो रही है की क्या सहमति से सेक्स की उम्र में बदलाव का प्रस्ताव सही दिशा में उठाया गया कदम है ? जिस देश में मनपसंद वर अथवा वधु का चुनाव करने की उम्र अठारह साल है और यहाँ तक कि राजनैतिक मत प्रकट करने की भी यही उम्र सीमा है वहां सहमति पूर्वक सेक्स करने के लिए इतनी कम उम्र का प्रस्ताव बहुत सी रूढिगत मान्यताओं की धज्जियाँ उड़ाता प्रतीत होता है .अगर यह नियम पारित हुआ तो समाज की संरचना का बदलना तय है .ज्ञातव्य है कि भारत में लिव-इन अर्थात स्त्री पुरुष के बिना विवाह साथ रहने के अधिकार को पहले ही मान्यता मिल चुकी है .
जब सहमति पूर्वक सेक्स की प्रस्तावित उम्र के बारे में सोसाइटी के एक बुजुर्ग व्यक्ति से बात की तो, उन्होंने पहले तो इस बारे मैं खुल कर बात नहीं की परन्तु थोड़ी देर बार वो सहज होकर इस प्रस्ताव की निंदा करने लगे। कारण पूछने पर वो मुझे धार्मिक मान्यताओं ,पाप पुण्य और शालीनता का हवाला देने लगे यहाँ तक की उन्होंने शास्त्रगत मर्यादा एवं आचरण शुद्धता की बात भी जोड़ी . तब मेरे मन मैं विचार आया की क्यूँ न किसी शास्त्र पारंगत व्यक्ति से ही बात की जाए .
चर्चा के अगले अंक में मैंने अपने एक परिचित पंडित जी को फ़ोन लगाया . यह श्रीमान एक मंदिर में पुजारी हैं . मेरी अपेक्षा के विरुद्ध वे इस प्रस्ताव का पक्ष लेते दिखे . उन्होंने कहा की हिन्दू धर्म मैं तो पहले से ही गन्धर्व विवाह का चलन है और जहाँ कहीं भी गन्धर्व विवाह का उल्लेख मिलता है वहां किसी भी वयस्क महिला या पुरुष को सहवास की स्वतंत्रता है . परन्तु उन्होंने यह भी कहा की अंग्रेजी में सेक्स और हिंदी के सहवास में बहुत अंतर है जहाँ एक और सेक्स उन्मुक्तता का पप्रतीक है वहीँ दूसरी और सहवास का आशय साथ -साथ रहने और जिम्मेदारियां उठाने से है .उनके मतानुसार सहवास बहुत कुछ, आजकल प्रचलित लिव -इन परंपरा का विशुद्ध रूप है। दोनों में केवल इतना अंतर है की जहाँ लिव -इन परंपरा बिना विवाह साथ रहने और सेक्स करने तक सीमित है वहीँ गन्धर्व विवाह साथ-साथ जीवन रस का आनंद लेने और विकास करने का मार्ग था।पंडित जी के अनुसार अंग्रेजी के अगर लिव-इन को अगर लाइव -इन के रूप में परिभाषित किया जा सके तो यह बहुत कुछ गन्धर्व विवाह जैसा होगा . शास्त्रों के अधिकारी इन पंडित जी ने चौदह वर्ष को शास्त्र सम्यक वयस्क उम्र बताया . इस उम्र के बाद शास्त्र के अनुसार चुनाव की स्वतंत्रता है .
वयस्क शब्द की परिभाषा को समझने के लिए मैंने अपने एक डॉक्टर मित्र को संपर्क किया . ध्यान दीजिये कि डॉक्टर मानसिक उम्र बजाय शारीरिक परिवर्तनों को ही उम्र एवं अवस्था परिवर्तन के लिए जिम्मेदार मानते हैं। मेडिकल साइंस तेरह -पंद्रह वर्ष की लड़कियों और सोलह-अठारह वर्ष के लडकों को उनके हार्मोन जनित शारीरिक परिवर्तनों के आधार वयस्क परिभाषित करता है . लड़कियों में मासिक धर्मं की शुरुवात औसतन तेरह वर्ष की उम्र में ही हो जाती है और उसका शरीर वयस्क होने की तयारी मैं होता है। सोलह वर्ष की उम्र तक यह प्रक्रिया पूरी हो जाती है . मैंने उस डॉक्टर मित्र को शुक्रिया कहा और सोच विचार मैं डूब गया .
प्रकृति स्वयं ही स्त्री पुरुष की परिभाषा गढ़ने मैं सक्षम है . सोलह साल की उम्र में एक लड़का या लड़की शारीरिक रूप से यौन संबंधों के लिए तैयार हो जाते हैं। हमारे समाज में सोलह वर्ष की अवस्था को वयस्क ही माना गया है . आज भी चोरी छुपे बाल विवाह हो रहे हैं . मेरे एक शिक्षक मुझे याद आते हैं जो सदैव कहा करते थे की कम उम्र में बनने वाले रिश्ते ज्यादा समय तक चलते हैं . शायद यही वजह है कि अमरीका जैसे देशों में जहाँ सेक्स उन्मुक्क्त है और लोग विवाह उम्रदराज होने के बाद ही कर रहे हैं ,अनेक पारिवारिक एवं वैवाहिक समस्याए मुह फाड़े खड़ी हैं . कवियों ने भी प्रेम की उम्र को सोलह ही माना है .यही वो उम्र है जब दिल किसी का हो जाना चाहता है या किसी को अपना बना लेना चाहता है .
परन्तु दूसरा पक्ष कहता है की प्रेम केवल सेक्स की तैयारी की अवस्था है परिपक्वता की नहीं .एक लड़की के लिए यह अवस्था संतानोत्पत्ति के लिहाज से अधिकांशतः जानलेवा ही होती है .वहीं इस उम्र का व्यक्ति भावनात्मक रूप से सुगठित भी नहीं होता और ऐसे में उसे सेक्स का अधिकार देना बन्दर के हाथ में उस्तरा पकड़ाने जैसा ही है .हमें यह भी नहीं भुलाना चाहिए कि हमारा समाज पुरुष प्रधान है जहाँ सरे आम इस तरह के अधिकार प्रदान करना व्यभिचारियों की लोलुपता बढ़ाएगा . आज समाज में बलात्कार और उत्पीड़न की घटनाएं साफ़ तौर पर दिखाती हैं कि किस तरह पुरुष समाज लड़की के पैदा होते ही उस पर गिद्ध दृष्टि जमाये रखता है।ऐसे समाज में सेक्स की उन्मुक्तता और उम्र सीमा के रूप मैं दी गयी छूट क्या इस वीभत्सकारी विचार को और पुख्ता नहीं कर देगी ? आज दिल्ली और मुंबई के रेड लाइट एरिया में हजारों नाबालिग लड़कियां देहव्यापार को विवश हैं ,उनमें से बहुत सी तो दस बारह साल की कच्ची उम्र में ही स्वेच्छापूर्वक इस दावानल में झोंक दी जाती हैं क्यूंकि उनकी उम्र और माहौल उन्हें स्वेच्छा या सहमति का मतलब समझने का अवसर ही नहीं देता .जिस देश में खस्ता हाल शिक्षा आज भी लाखों युवाओं को मानसिक रूप से परिपक्व नहीं बना पा रही है और जहाँ सोलह साल के अधिकांश युवा मानसिक तौर पर शायद दस साल के कान्वेंट educated बच्चे की बराबरी करने मैं अक्षम हैं ; जिस देश में आज भी यौन शिक्षा मात्र किताबों तक ही सीमित है , वहां इस तरह के अनर्थक प्रस्तावों पर विचार महज कुछ बुद्धिजीवियों का उम्दा मनोरंजन ही कर सकता है .
इसमें कोई दो राय नहीं की समाज बदल रहा है और बदलते समाज के साथ साथ नियमों और परम्पराओं का बदलना भी लाजिमी है पर यह भी याद रखना आवश्यक है की परिवर्तन की क्या कीमत हम चुकायेंगे ? क्यूंकि कोई भी परिवर्तन अकेला नहीं आता बल्कि अपने साथ परिवर्तनों की एक पूरी श्रृंखला लाता है .
बात उम्र की कदापि नहीं है . गाँधी जैसे महापुरुष का विवाह भी कम उम्र में ही हुआ था .प्रेम और सेक्स को नियमों तथा उम्र सीमा में बांधने का कोई विचार आज तक किसी देश या किसी काल में सफल नहीं हुआ . यह नियम भी अगर पारित हुआ तो केवल एक कागजी नियम बन कर रह जायेगा मगर इसकी वजह से उन्मुक्तता का जो सन्देश भारतवर्ष में फैलेगा उसकी बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है .
फिलहाल भारत सरकार को चाहिए की वो वयस्क पारिभाषित किये जाने योग्य उम्र सीमा तय करे और विचार करे की एक वयस्क को इस देश में क्या क्या अधिकार दिए जा सकते हैं . इस तरह सेक्स आधारित नियम समाज को सही दिशा देने की बजाय भ्रमित भी कर सकते हैं .
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