Saturday, March 23, 2013

मुझे जिल्लत नहीं चाहिए ,मुझे किल्लत नहीं चाहिए

मुझे जिल्लत नहीं चाहिए ,मुझे किल्लत नहीं चाहिए,
गरीबी में पला हूँ ,मुझे सोचने की सहूलियत चाहिए।

डरी हुई ज़िन्दगी नहीं ,विचारों की मौत नहीं चाहिए ,
गरीब हूँ तो क्या ,मुझे भी  जीने  का हक चाहिए।


मेरे रोने से जिनकी नींद में खलल पड़ता हो !
मेरे ठण्ड में सिकुड़ने और करवटें बदलने  से जिनकी कम्बलों वाली गर्म नींदे चिढ़ जाती हों ,
और मेरे गर्मी के पसीने से जिनके वातानुकूलित कमरों में नमी और बदबू  बढ़ जाती हो,

अरे देखो जरा !!

कि मुझे भी ये  गर्मी ,ये सर्दी नहीं चाहिए
अगर मिल जाये महज एक छत और दो रोटियां
तो न तेरा गद्दा ,न शीशमहल चाहिए।।

रुका हुआ है फैसला मेरा न जाने कब से ,
कब से गिड़गिडा रहा हूँ कि  मुझे मेरा हक चाहिए।।

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