Monday, March 11, 2013

निर्भया -गैंग रेप के सह आरोपी ने अंतिम सांस ली !!



निर्भया -गैंग रेप के सह आरोपी ने अंतिम सांस ली !! यह आत्महत्या थी या नियोजित हत्या इसका फैसला पोस्टमार्टम या यूँ कहिये कि सियासी पोस्टमार्टम मैं हो जायेगा . जिस सियासी शतरंज मैं बाजियां खेल से पहले ही तय हो जाती हैं वहां सही निर्णय की उम्मीद कम ही है .

खैर आरोपी राम सिंह का यह दूसरा जुर्म है . परन्तु फिर भी सराहनीय है .कृपया ध्यान दें की मैं आत्महत्या की प्रशंसा नहीं कर रहा अपितु पश्चाताप जन्य वेदना का पक्ष ले रहा हूँ . हमारे नेतागण तो ऐसा दुस्साहस कभी ना करें . जनता के टैक्स को बिना टैक्स संग्रह करने वाले कुछ साम्राज्यवादी बाहुबली सांसद जिनके गैरजिम्मेदाराना रवैये से न जाने कितनी निर्भायायें ऐसी या इससे भी निर्मम मृत्यु का शिकार हो रही हैं ,शायद कभी आत्महत्या न करें .अगर उनसे तुलना की जाय तो राम सिंह का कदम इतना पीड़ादायक प्रतीत नहीं होता .

अगर समाज की यही गत रही तो एक दिन सोलह सोमवार का व्रत करने वाली बालिकाएं शिवजी से मंगल वर नहीं बल्कि इच्छा मृत्यु का वरदान मांगने को विवश होंगी . जहाँ एक तरफ इस देश मैं निर्भय की पीड़ा मे आँखे  नम करने वाले लोग हैं वहीँ दूसरी तरफ उस पर सवाल उठाने वाले भी कम नहीं हैं .एक महिला समाजसेवी ने तो यहाँ तक कह दिया की जब निर्भया इतने सारे तन लोलुप लोगों से घिर गयी थी तो उसने समर्पण क्यूँ नहीं कर दिया ??? कम से कम उसकी आंते तो बच  जाती !!! पर मेरा उन समाज सेविका  देवी से इतना ही कहना है की सब के लिए जान इज्जत से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं होती .

भगत सिंह भी माफ़ी मांग लेते तो शायद बच जाते . सत्तर दिन भूखे रहने की पीड़ा भी सहन नहीं करनी पड़ती और ये समाज सेविका आज गुलाम देश मैं अंग्रेजों के बर्तन मांज रही होतीं .

हर एक को नहीं आता इज्जत को गवां देना
कुछ खून करके बचाते हैं कुछ खून होके बचाते हैं

अगर मेरी आवाज आप तक पहुचे तो अपने दिमाग को इतना जरूर सोचने दीजियेगा की जिस समाज में महिलाओं की सुरक्षा की सीमा शाम को सात बजे के बाद समाप्त हो जाये और सड़कें जंगल बन जाएँ वहां के विकास की कल्पना एक कल्पना मात्र ही है .

समाज की मुक्ति महिलाओं को बंदी बनाकर नहीं की जा सकती . पीड़ितों को जेल में बंद कर देना ताकि खुले घूम रहे दरिन्दों से उनकी हिफाजत की जा सके .....उफ़ !कितना घुटन भरा अंदाज है ये।

अनपेक्षित धर्मगुरुओं , ढ़ोंगी समाज सेवकों , विकृत राजनेताओं और उन जैसे हजारों विकृत पुरुषों से सना यह समाज गुरुदेव रविंद्रनाथ की मुक्त समाज की कल्पना पर टिपण्णी करने के लिए अभी बहुत बौना है .

दीपक अनजान



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