Saturday, May 11, 2013

हाफ पेंट- लघु कथा

जेठ  की भरी गर्मी में ,पसीने से पुते चेहरे के बीचों बीच रामू की फैली हुई मुस्कान और चमकती आँखों ने गवाही दी की उसके पापा खाकी रंग का हाफ पेंट खरीदकर लाये हैं। मलेरिया की कंपकपी और जलती गर्मी के झुलसा देने वाले लू के थपेड़े भी शायद उतने ताकतवर नहीं होते जितनी एक बालसुलभ हठ और उत्सुकता होती है।

रामू उठा और लपककर पापा के हाथों से छीनकर हाफ पेंट पहन ली।इस बात बात से कोई फरक नहीं पड़ा कि  दादी पीछे से चिल्लाती रह गयी " जूड़ी पाँच दिन में उतरेगी लल्ला , अभी तुम पूरी तरह ठीक नहीं न हो ! पर दादी की पोपली आवाज कहाँ बचपन की रवानी को रोक पाती। बचपन है ही ऐसा . बचपन में सब आप के पीछे भागते हैं क्यूंकि आप भविष्य होते हो . जवानी में सब आपके साथ चलते हैं क्यूंकि तब आप वर्तमान होते हो . बुढ़ापे में कोई नहीं होता , न साथ में न पीछे , क्यूंकि तब आप गुजर जाने की स्थिति वाले भूतकाल होते हो।

सबने हाफ पेंट की तारीफ की। तारिक ,किसना ,हेमू सब ने !

जूड़ी उतरी तो रामू स्कूल भी जाने लगा . अपना हाफ पेंट पहनके ,जिसमे तीन जेबें थीं . दो बगल में एक पीछे . पीछे वाली जेब में चूरन वाली गोलियों  के लिए दी गयी चवन्नियां खनखनाती और बगल वाली जेबों में कंचे की लाल , हरी भूरी गोलियां ठुमका करतीं . स्कूल सरकारी था , लंबे से हाल में सभी कक्षाओं को साथ बिठा लिया जाता . लम्बी लम्बी टाट की बनी पट्टियां बैठने के लिए बिछाई जातीं  जिन पर बैठ सिर हिला-हिला कर पहाड़े याद करते बच्चे कभी एक दूसरे को कोहनी ,कभी सिर  मारते , कभी हँसते कभी खीझते।

फटी हुई टाटपट्टियों के बड़े-बड़े छेदों के बीच बैठने के लिए जगह मिलना मुश्किल होता . रामू जल्दी आता . उसे बैठने के लिए जगह बनानी होती ,उसका हाफ पेंट जो नया था। अपने खाकी पेंट के लिए रामू के दिल में
अपार प्रेम था। इससे पहले वाला पेंट तो नीला था , बड़े भाई की उतरन ! पर ये वाला नया था ,उसका अपना।इसके लिए रामू कुछ भी करता !उसकी सर्दी की नाक भी अब सामने वाले बच्चे की पेंट की ही शोभा बढाती .

तीन जेबें थीं मगर उसमे पूरी दुनिया भर लेने का ख्वाब। दस साल की उमर ,हड्डियों का ढांचा , कहीं मांस का नामोनिशान नहीं। इस बार जब सरकारी डॉक्टर जाँच के लिए आई तो पूछा अरे वाह तुम्हारा हाफ पेंट तो बड़ा अच्छा है , किसने दिलाया ? " पापा ने ! शरमाते हुए रामू ने कहा . " अपनी अम्मा से बोलना तुमको दूध और हरी सब्जी खिलाये , बहुत कमजोर हो तुम !

घर जाकर रामू ने अम्मा से कहा मेरा  हाफ पेंट बहुत अच्छा लगा डॉक्टर आंटी  को और उसने बोला अम्मा से बोलना कि एक और लेकर दो "

स्कूल में हर शनिवार दलिया बाँटा जाता . रामू खाता और जेब में भरकर भी लाता . एक बार जब रामू को दस्त लगे तो बेचारा स्कूल से भागा पर बहुत कोशिश करने के बाद भी अपने हाफ पेंट को नहीं बचा पाया .
ऊपर से बहती पीली धार ने चप्पलों को तर कर दिया . घर पर मार भी पड़ी पर उसकी पूछने की हिम्मत नहीं हुई कि  क्यूँ ? रात को अम्मा ने प्यार किया , दवाई भी दी . रामू ने पूछा " मेरा पेंट धो दिया ?"

वो हाफ पेंट रामू का जीवन केंद्र था . फाउंटेन पैन की स्याही के छींटे ,घिस चुकी जेबें , और ढीला पड़ चुका इलास्टिक का नाडा इन सब के बावजूद अपने हाफ पेंट पे फक्र था उसे . उसने हेमू के घर जाना बंद कर दिया   क्यूंकि वहां उसका पालतू पिल्ला रामू के पेंट के पीछे पड़  जाता।

रामू के मुहल्ले में शाम को शाखा चलती . सब बच्चे इकठ्ठा होते ,खेलते , करते  और  राष्ट धर्म की कसमे खाते . शाखा वाले भैया बताते की हम खाकी पेंट पहनने वालों के ऊपर बड़ी जिम्मेदारी है। हम हाफ पेंट पहनते हैं क्यूंकि हम जानते हैं की हम एक ग़रीब देश में रहते हैं जहाँ लोगों को रोटी - कपडा -मकान का अभाव है ,ऐसे में हमें सादा कपड़े पहनना चाहिए .

"खाकी रंग देश भक्त का होता है ,इसलिए मैं पहनता हूँ " जब रामू ऐसा बोलता तो पापा हंस पड़ते .

रामू बड़ा होता गया और हाफ पेंट छोटा . उसे अलमारी में सम्हाल कर रख दिया .रामू ने दसंवी पास कर ली और खेती बाड़ी में बाप का हाथ बांटने लगा . फिर एक ऱोज पुलिस की भर्ती निकली,फार्म भरा गया  और रामू , हवालदार रामवीर बन गया .  ट्रेनिंग शुरू हुई तो खाकी वर्दी भी मिली .

पहली बार घूस का पैसा लेकर घर में आया कहा "अम्मा इसे अलमारी में रख दो "

अम्मा पैसा रखकर वापस आई और बोली "बेटा अलमारी में तेरा बचपन वाला हाफ पेंट रखा है , अब तेरे पास पूरी खाकी वर्दी है ..इसे अब भी साथ रखेगा क्या ?

"नहीं अम्मा फ़ेंक दे उसे !" हवालदार रामवीर बोला  .......................


दीपक










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