पूर्णिमा और अमावस्या दोनों ही पूर्णता को दर्शाती हैं , एक पूर्णता है ज्ञान की तो दूसरी खालीपन से उपजे ज्ञान की प्रेरणा की .एक स्थिति है प्रकाश की तो दूसरी प्रकाश की खोज की .कितना आश्चर्य है की प्रकाश और अन्धकार दोनों की सघनता में दीखता कुछ भी नहीं .प्रकाश की वेदना आँखों को बंद कर देती है और अँधेरे की वेदना उन्हें जरूरत से ज्यादा फैल जाने के लिए विवश कर देती है किन्तु बिना आत्मज्ञान के दोनों ही परिस्थितियों मैं अनुभव कुछ नहीं होता .
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