बरसों पहले छूटे रस्ते ,राह कौन सी पकडूँ मैं,
सारे चेहरे नये -नये से ,कौन इशारा समझूं मैं।।
एक नीम का पेड़ बड़ा सा इसी किनारे होता था,
ढीली खटिया पे मेरा दादा उसी छाँव में सोता था।।
अब तो एक दवाखाना है ,नीम जहाँ पे होता था
समझा अब क्यूँ दादा मेरा नीम को डॉक्टर कहता था।।
सारे चेहरे नये -नये से ,कौन इशारा समझूं मैं।।
एक नीम का पेड़ बड़ा सा इसी किनारे होता था,
ढीली खटिया पे मेरा दादा उसी छाँव में सोता था।।
अब तो एक दवाखाना है ,नीम जहाँ पे होता था
समझा अब क्यूँ दादा मेरा नीम को डॉक्टर कहता था।।
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