निष्प्राण चेतना में उल्लासित प्राण फूकने मैं आ तो जाउंगा प्रियवर
पर क्या तुम मेरे प्राणों को जीवन के रंग उतारोगे ?
जब थक कर निष्ठुर जीवन तुमको त्रास ,रंज देगा
तब भी क्या तुम मेरे प्राणों को वो अभिनव गीत सुनाओगे
क्या महकाओगे जीवन की इस बगिया को प्रतिपल ?
क्या गाओगे जीवन राग खुशी का कल-कल ?
क्या नाचोगे मिथ्या जीवन की इस सुन्दर नाटकशाला मैं
या भव्य मनोहर सुन्दर उपवन मैं आंसू रोज बहाओगे
इस मिट्टी के निर्जन में तुम मेरे बालक खो न जाना
इन कुंद अभावों में जीवन के भावों को भूल न जाना
मैं आऊंगा लेने तुमको ,मैं आऊंगा लेने तुमको
जीवन की पीड़ा सहते सहते तुम मुझको लेकिन भूल न जाना
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