आज मछ्छरों और कीड़ों के बीच से झांकते एक लैंप के नीचे
बैठकर सोचा कि अब तक क्या पाया .......
हँसता रहा , रोता रहा या हँसने की चाहत में रोता रहा
रोकर के हँसा खुद पे, किसलिए यूँ ही रोता रहा
कभी हँसी आयी भी जरा सी तो ज़माने के डर मैं रोता रहा
मैं रोता रहा उसपे हँसता रहा वो
मैं हँसने लगा तो क्यूँ रोने लगा वो
दूसरों पे हँसना ,और खुद पे रोना
महफ़िल में हँसके ,बंद कमरों में रोना
बिन आंसु के रोना ,ठहाकों बिन हँसना
कभी हँसने पे हँसना और रोने पे रोना
इस दोहरी जिन्दगी के कुछ निशान बाकी हैं
एक जेब में खुशियाँ और दूसरी में आंसू बाकी हैं
मुझे सिर्फ चुनना है ...एक जेब
बैठकर सोचा कि अब तक क्या पाया .......
हँसता रहा , रोता रहा या हँसने की चाहत में रोता रहा
रोकर के हँसा खुद पे, किसलिए यूँ ही रोता रहा
कभी हँसी आयी भी जरा सी तो ज़माने के डर मैं रोता रहा
मैं रोता रहा उसपे हँसता रहा वो
मैं हँसने लगा तो क्यूँ रोने लगा वो
दूसरों पे हँसना ,और खुद पे रोना
महफ़िल में हँसके ,बंद कमरों में रोना
बिन आंसु के रोना ,ठहाकों बिन हँसना
कभी हँसने पे हँसना और रोने पे रोना
इस दोहरी जिन्दगी के कुछ निशान बाकी हैं
एक जेब में खुशियाँ और दूसरी में आंसू बाकी हैं
मुझे सिर्फ चुनना है ...एक जेब
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