Saturday, March 9, 2013

मेरे मुरझाये कुम्हलाये ,सकुचाये , चहरे को मत देखो |

मेरे मुरझाये कुम्हलाये ,सकुचाये , चहरे को मत देखो  |
देखो उन ताजा फूलो को जो संग लिए मैं  फिरती हूँ 
बसते का बोझ बहुत था शायद इसलिए फूल बेचती हूँ 
तुम्हारी परी कहानियों में ,मै  भी कोई पात्र थी शायद | 
फिर क्यों चोराहो पर अपनी पहचान  ढूंढ़ती  फिरती हूँ 
फूलो से रिश्ता है मेरा क्या इसलिए धुल  और काटे हैं ? 
आँखों मे सात समन्दर हैं  क्यूँ  कंकड़ चुनती  रहती हूँ
एक दिन ये फूल दागा देंगे और मेरा गजरा बन जायेगे 
ललचाये भवरें रस पीने ,फिर कहाँ कहाँ  से आयेंगे 
हर रात सजेगा फूलों का बिस्तर मेरे आंगन में 
आँखों में  सूखे आँसू पीछे गम का सागर दिल में 
पर फूलों संग आये कांटे तुम बोलो कौन हटाएगा ?
मेरे कमरे की खुशबु वाली बदबू कौन हटाएगा 
बिटिया ,बहन और माँ तो शायद कभी नहीं बन पाउंगी 
मैं फुलों के संग आयी थी पर  बिन फुलों  के जाउंगी 
गर मेरी पीड़ा समझ  सको तो एक काम  तुम कर देना 
बिन काँटों वाला एक फूल तुम ,मेरे दामन  रख देना 




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