Tuesday, May 7, 2013

संगमरमर के पत्थरों पर हमने भी लिखा था तेरे नाम का फ़साना

संगमरमर के पत्थरों पर हमने भी लिखा था तेरे नाम का फ़साना
कौन कहता है बस शाहजहाँ अकेला आशिक था ताजमहल बनाने वाला

पिघलती मोम की बूंदों को हमने भी हथेलियों पे आजमाया है
ये अलग बात है की जलने वालों में बस परवाने का नाम आया है


कितनी रातें यूहीं जागते हुए काट दी हमने तेरा नाम ले ले कर
फिर क्यूँ हर शायरी में मेरी जगह चाँद का नाम आया है

तेरे एक फूल से क्या बनता बिगड़ता मेरे जनाज़े का
मगर तेरा आना मेरे जाने में काम आया है


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