Monday, June 10, 2013

मैंने प्रेम भरे हजारों पत्र लिखे , कोई जवाब नहीं आया . जब मैं भिक्षा मांगने आया तब भी तुम्हारा पट बंद ही मिला .क्यूंकि मेरी शिकायत भी बड़ी थी . सोचा , तुम सोच रहे होगे ! फिर मैंने भी सोचा कि मैं ही  सबकी मुक्ति की चिंता क्यूँ करूँ ? मैं ही क्यूँ गरीबों के पीछे निवाले लेकर फिरूँ जबकि मुझे मालूम है कि मेरे हाथ से जाने वाला हर निवाला तो तू ही है , जिसे खिला रहा हूँ वो तू , और जिसकी प्रेरणा से खिला रहा हूँ वो भी तू और यहाँ तक की खिलाने का माध्यम अर्थात मैं भी तो स्वय तू ही है .

फिर सोचा की अनंत काल से चले आ रहे इस काल चक्र में जब तू ही अपनी माया बंद नहीं करता तो मैं क्यूँ अपने कर्म बंद कर दूँ . अगर ये गरीब/मजबूर तेरा हिस्सा हैं तो मेरा भी तो कुछ नाता है इनसे !! खैर ऑंखें बंद की तो दिल से कुछ उद्गार निकले..........जानता हूँ की लिखने वाला भी तू है और जो इसे पढ़ेगा वो भी तू ही होगा.........मगर फिर भी बस यूँही ........

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