Saturday, August 31, 2013

लम्हा भी अब कतरा -२ गुजरता है

 लम्हा भी अब कतरा -२ गुजरता है
 क्या है जिंदगी बिन तेरे अब !!

Monday, June 10, 2013

'मज़बूरी का नाम महात्मा गाँधी'

हमारा दर्शन देश के युवाओं को राष्ट्र धर्म एवं मानव धर्म से जोड़ना है .युवा देश का भविष्य हैं परन्तु कहीं न कहीं शाश्वत मूल्यों पर उनका विश्वास डगमगाया है .'मज़बूरी का नाम महात्मा गाँधी' जैसे जुमले उसी अविश्वास से उपजी सोच की परिणिति हैं।आज देश का युवा अपनी भाषा से ज्यादा विदेशी भाषा का सम्मान करता है . छाछ की जगह कोक पीता है और शादी की जगह लिव -इन रहना पसंद करता है .

आज का युवा अवसाद ग्रस्त है क्यूंकि जीवन में मूल्य नहीं हैं . और जिस जीवन में मूल्य नहीं वो जीवन मूल्यहीन हो जाता है . फिर मूल्यहीन जीवन ,आत्मा पर एक बोझ बन जाता है . सिर्फ अपने बारे में सोचने की प्रवृति जीवन में विकृति पैदा कर देती है और यही विकृति समाज को अपंग बना देती है .

सन्डे-सन्यासी के जरिये उस छुपी विकृति को मिटाना  और समाज में ऊर्जा प्रवाह को संयमित करना अर्थात  जहाँ -जहाँ आवश्यकता हो ऊर्जा का प्रवाह सुनिश्चित करना तथा ऐसे सभी कार्यों में युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना हमारा ध्येय है .

Our vision is to inculcate the culture of national service and human service into youths. Youths are future of country but somewhere their belief on eternal values has been shattered .Proverbs like "Helpless is name of Mahatma Gandhi " are result of that non belief only .Today youths respect a foreign language  more than their own , they drink coke but not buttermilk,they believe in live-in but not marriage !!

Today youths are suffering from trauma of not having values in life . Life without values is a vanity  which malign their pure soul and finally our society .

Sunday Sanyasi is a movement through which we want our youths to awake and balance the energy flow into and all across  the society by contributing in noble causes.


मैंने प्रेम भरे हजारों पत्र लिखे , कोई जवाब नहीं आया . जब मैं भिक्षा मांगने आया तब भी तुम्हारा पट बंद ही मिला .क्यूंकि मेरी शिकायत भी बड़ी थी . सोचा , तुम सोच रहे होगे ! फिर मैंने भी सोचा कि मैं ही  सबकी मुक्ति की चिंता क्यूँ करूँ ? मैं ही क्यूँ गरीबों के पीछे निवाले लेकर फिरूँ जबकि मुझे मालूम है कि मेरे हाथ से जाने वाला हर निवाला तो तू ही है , जिसे खिला रहा हूँ वो तू , और जिसकी प्रेरणा से खिला रहा हूँ वो भी तू और यहाँ तक की खिलाने का माध्यम अर्थात मैं भी तो स्वय तू ही है .

फिर सोचा की अनंत काल से चले आ रहे इस काल चक्र में जब तू ही अपनी माया बंद नहीं करता तो मैं क्यूँ अपने कर्म बंद कर दूँ . अगर ये गरीब/मजबूर तेरा हिस्सा हैं तो मेरा भी तो कुछ नाता है इनसे !! खैर ऑंखें बंद की तो दिल से कुछ उद्गार निकले..........जानता हूँ की लिखने वाला भी तू है और जो इसे पढ़ेगा वो भी तू ही होगा.........मगर फिर भी बस यूँही ........

Tuesday, June 4, 2013

Sarkari Karmchari

प्रोटोकॉल के नाम पर एक सरकारी ऑफिसर को लेने चार कर्मचारी लोग रेलवे station पहुँच जाते हैं . मुझे समझ नहीं आता ये कैसे प्रसाशन सम्हालेंगे जिन्हें एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए चार कन्धों का सहारा चहिये.  

Tuesday, May 28, 2013

नैनो में सपने, मेरे सपनों में नैना

कैसे काली रात कटेगी , झर-झर बरसे रैना
नैनो में सपने, मेरे सपनों में नैना
तुझसे बिछड़ के मरना क्या और क्या है मेरा जीना
नैनो में सपने, मेरे सपनों में नैना

देख बताने आये है सब दिन ये साल महीना
नैनो में सपने, मेरे सपनों में नैना
दूर भी है और पास भी तू यह जहर है मुझको पीना
नैनो में सपने, मेरे सपनों में नैना

इतना उधड चूका हूँ अब तो मुश्किल हो गया सीना
नैनो में सपने, मेरे सपनों में नैना
सारे रस्ते देख लिए हैं बैठ लिया हर झीना
नैनो में सपने, मेरे सपनों में नैना

दीपक


जी ले जीवन को जी भर के , बड़ी ये जिम्मेदारी है

जी ले जीवन को जी भर के , बड़ी ये जिम्मेदारी है
आज है उसकी बारी , कल फिर तेरी बारी है
आना जाना चक्र पार्थ ये हाहाकारी है
आज है उसकी बारी , कल फिर तेरी बारी है
ना कुछ लाया ना कुछ छोड़ा , महज ये मोह बीमारी है
आज है उसकी बारी , कल फिर तेरी बारी है
तम ,रज और सत तीन गुणों की सोच हमारी है
आज है उसकी बारी , कल फिर तेरी बारी है
तेरा जो  कल था ,आज है मेरा ,सतत परिवर्तन जारी है
आज है उसकी बारी , कल फिर तेरी बारी है
लोभ मोह माया में लिपटी सोच बेचारी है
आज है उसकी बारी , कल फिर तेरी बारी है
यत्र -तत्र -सर्वत्र व्याप्त प्रभु सत्ता न्यारी है
आज है उसकी बारी , कल फिर तेरी बारी है
कर्म करे जा फल ही इच्छा एक लाचारी है
आज है उसकी बारी , कल फिर तेरी बारी है

दीपक  

सागर जैसा मन मेरा,उन्मुक्त किनारों वाला

सागर जैसा मन मेरा,उन्मुक्त किनारों वाला
हर बूंद समाहित कर कर के मैं बूंद बूंद को सागर करता
बूंद बूंद फिर टूट टूट कर बादल को सब वापस करता
रह जाता खारापन मुझमे मधुर तृप्ति को वापस करता
ताप-कोप को सहने वाला शीतलता लौटने वाला
सागर जैसा मन मेरा,उन्मुक्त किनारों वाला

दीपक 

Saturday, May 25, 2013

बर्दाश्त नहीं कर सक

बर्दाश्त नहीं कर सकता कि कोई आकर सिखाए इश्क के गुर मुझको
दिल को दवात  ,लहू को स्याही, तेरे चेहरे को ख़त बनाकर
लिखता रहा हूँ आज तक
खुद को खुद में डुबोकर सीखता रहा हूँ आज तक 

पंछी बन, एक सुबह मेरा मन

पंछी बन, एक सुबह मेरा मन
उड़ता गया ,ढुंढने अद्भुत अंत गगन
ऊपर से देखा
व्यापारी बन ,बेच रहा तन मन धन
बदले में मिलते देखा घोर निराशा और क्रंदन

प्रेम वासना के बाजार में बिक रहा रुपये का सेर
और राजनीती की दौड़ में दोड़े सर्कस के सब शेर
सबने टिकट लिया पश्चिम का ,बहरी है आवाज
हुई अहिल्या कातर सी और हिजड़ा हुआ समाज

है सरे आम फुटकर में नीलामी उच्च विचारों की
कोड़े खाती लुटती पिटती है टुकड़ी संत बेचारों की
अतिभय व्यापी सत्य बेचारा ठोकर खाता घूम रहा
और व्यभिचारी असत्य रात दिन शोहरत का मुंह चूम रहा

होड़ लगी सबसे ज्यादा आगे रहने वालों की
बहुत ही ज्यादा पीछे रह गयी ममता इन इंसानों की
मैं चिल्लाया रोको रोको गलत हो रहा रोको सब
एक बाज झपट्टा मार ले चला ,बहुत हो गया मुन्ना अब





बदला जन गन मन का देश

दल बदला ,दंगल बदला ,बदला जन गन मन का देश
मन सूखे ,सुखी नदियाँ हे उच्छल जलधि नरेश
टूट टूट क्यूँ बिखर गया अधिनायक अखंड प्रदेश
हे भारत भाग्य विधाता पूछे मेरा अंतर क्लेश
कब दोगे शुभ आशीष मिटेगा कब ये अंतस द्वेष ?
रावन जय गाथा गाता है पहन के तेरा भेष
मति भ्रम दूर करो मनहारी भेजो दिव्य सन्देश

दीपक 

तिरंगा

मुझसे एक बार मेरे मित्र ने हमारे राष्ट्र ध्वज का दर्शन पूछा , सही उत्तर मुझे नहीं मालूम था फिर भी मेरे कवि ह्रदय ने उस वक़्त जो पंक्तियाँ मेरे मित्र को बताईं आपके सम्मुख रखता हूँ . आपमें से जो भी इसके मर्म को समझें कृपया इसे दूसरों को भी सुनाये .


ऊपर है भगवा सा जो रंग , हर हिन्दू को प्यारा है
नीचे हरा भरा जो रंग है ,हर मुस्लिम का दुलारा है
इन दोनों के बीच शांति का रंग श्वेत फहराता है
तीन रंग का प्रेम-बंध ये एक तिरंगा न्यारा है
मिलकर रहें सदा सब बंधु .नील चक्र बतलाता है
करें खोज प्रकाश की प्रतिपल ऐसा देश हमारा है

दीपक 

Friday, May 24, 2013

बादल पानी हो गया ,पानी बादल हो गया

बादल पानी हो गया ,पानी बादल हो गया
तेरे इश्क के रंग नहीं बदले तो क्या ,बदल गया एक साल में
मैं मैं न रहा ,तब भरा था आज खाली  हो गया



दिल में पनपता है

दिल में पनपता है
सीने में धड़कता है 
हूक सी उठती है जब
तो आँखों में पिघलता है
दर्द जब हद से परे हो जाता है
तो आँखों से झलकता है
चेहरे को भिगोता हुआ
इबादत करते हाथों पे आ गिरता है

मेरे ये अश्क भी तो भाप बनके उड़ते होंगे
इस खुश्क मौसम में थोड़ी तो नमी पैदा करते होंगे
कभी ये भी तो बादल का हिस्सा बन उड़ते होंगे
किसी खेत में बारिश बनके बरसते होंगे
गेहूं की बालियाँ जब खेतो में लहलहाती होंगी
कुछ दाने यक़ीनन मेरे अश्क से भी बनते होंगे

इन दानों को कोई भूखा बच्चा जब खायेगा
खूब हंसेगा ,खेलेगा और मां के मन को भायेगा

दर्द को ,आंसू को, खुशियों में ऐसे बदला जाता है
समझ गया तेरे आगे हर सिर क्यूँ झुक जाता है
समझ गया तेरे आगे हर सिर क्यूँ झुक जाता है

दीपक




Thursday, May 23, 2013

जो दुश्मनी के दोस्त हैं ,ऐसे दोस्तों का साथ छोड़ देना

जो दुश्मनी के दोस्त हैं ,ऐसे दोस्तों का साथ छोड़ देना
बीच दरिया में वरना ये तुम्हें छोड़ देंगे
चिल्लाओगे ,रोओगे फिर भी नहीं होंगे ये
डाली टूटने से पहले हाथ तुम्हारा छोड़ देंगे  

Wednesday, May 22, 2013

सांसे गिन रहा था अपनी बैठकर ,सिवाय एक साँस के हर साँस पे बेवफा तेरा, बस तेरा नाम आया

सांसे गिन रहा था अपनी बैठकर ,सिवाय एक साँस के हर साँस पे बेवफा तेरा, बस तेरा नाम आया 
दुआ मांगी थी तेरे वास्ते खुदा से एक रोज इसलिए ,काफ़िर की एक साँस पे उसका भी नाम आया

Tuesday, May 21, 2013

एक जीवन भी कम पड़ जाता और कहाँ से लाऊं मैं

एक जीवन भी कम पड़ जाता और कहाँ से लाऊं मैं
सेवा में हर शब्द समर्पित, नव गीत कहाँ से लाऊं मैं

लिख लिख कर है धन्य लेखनी,रक्त कहाँ से लाऊं मैं
देना तू आशीष सदा मां सत पथ से ना डिग जाऊं मैं

जब जब जीवन मिले भारते तेरा ही कहलाऊँ मैं
शीश नवाऊँ ,शीश कटाऊँ तुझसे दूर न जाऊँ मैं


दीपक


पञ्च रंग की नाटकशाला यह संसार हमारा है

पञ्च रंग की नाटकशाला यह संसार हमारा है
काम,क्रोध,मद,लोभ,मोह में जाता जीवन सारा है

जीवन उसका नाम है जो काम  देश के आता है
स्वाभिमान से जीता है और देता सबको सहारा है

अपने लिए जीने वाले को मनुष्य नहीं कह सकते है
मानव जीवन तो वो है जिसको सबका जीवन प्यारा है


मैं टूट कर गिरुं भी तो आईने की तरह

मैं टूट कर गिरुं भी तो आईने की तरह
तेरे चेहरे को हजार कर लूँ ,तेरे दुश्मन पे मैं वार  कर दूँ

मेरे क़त्ल की गवाही देने भी न आना कोई गम नहीं ए दोस्त
मुझे आदत है कि  दो आंसुओं को मैं चार कर लूँ


दीपक





सांसे गिन रहा था अपनी बैठकर

सांसे गिन रहा था अपनी बैठकर  ,सिवाय एक साँस के हर साँस पे बेवफा तेरा बस तेरा नाम आया
दुआ मांगी थी तेरे वास्ते खुदा से एक रोज इसलिए ,काफ़िर की एक साँस पे उसका भी नाम आया 

Monday, May 20, 2013

जो पहले से पता हो हाल ए दिल यार का, तो कहाँ इश्क करने का मजा आता है। घर मालूम हो खुदा का जिसको , उसे क्या खाक मस्जिद में जाने का मजा आता है।।

जो पहले से पता हो हाल ए दिल यार का, तो कहाँ  इश्क करने का मजा आता है।
घर मालूम हो खुदा का जिसको , उसे क्या खाक मस्जिद में जाने का मजा आता है।।
मंजिल को चूमने की जल्दी नहीं हमको ,हमें तो रास्तों पे झूमने का मजा आता है।।।